Thursday, July 24, 2008

कुछ खोया सा रहता हूँ


कुछ खोया सा रहता हूँ

तुम याद मुझे करते होगे और ख्वाब मेरे बुनते होंगे,
पहले की तरह शायद अब भी तस्वीर मेरी रखते होगे,
अक्सर की दुआओं में अब भी मेरे लिए तुम कहते होगे,
खुश रहने की शायद अब भी तम्बीह मुझे करते होगे.
और देर तलक उन रास्तों पर तनहा तनहा चलते होगे,
गुमनाम अंधेरो में अब तो सपनो की कबर बन जाती हैं
सूरज की किरणों से अब रूह मेरी जल जाती हैं,
फिर सोचता हूँ शायद तुम भी कुछ खोये से रहते होगे.
दुनिया की इस भीड़ में अक्सर घूम हो कर रहते होगे,
शायद उन लम्हों की यादें कांटो सी चुभती होंगी
फिर भूलने की खातिर उनको तुम ख़ुद से सौदा करते होगे,
हर शाम में तनहा रहता हूँ, रास्तो को में तकता हूँ,
कुछ होश नही हैं मुझको भी, मैं क्यों अब ऐसा रहता हूँ।


...रवि
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'Mere Khwabon Me'
http://mere-khwabon-me.blogspot.com/

5 comments:

Anonymous said...

सुन्दर भाव है।

परमजीत सिहँ बाली said...

सुन्दर भाव है।

हर शाम में तनहा रहता हूँ,
रास्तो को में तकता हूँ,
कुछ होश नही हैं मुझको भी,
मैं क्यों अब ऐसा रहता हूँ।

Udan Tashtari said...

वाह! बहुत सुन्दर.बहुत बधाई.

seema gupta said...

पहले की तरह शायद अब भी तस्वीर मेरी रखते होगे,
"wo roy to bahut par muh mod ke roye, bade majbur honge jo dil tod ke roye, mere samne ker ke meri tasvir ke tukde, pata laga bad me tukde jod-jod ke roye........"

Anonymous said...

vah bhut sundar rachana. pahali baar aapke blog par aai aapko padana bhut achha laga. aage bhi bani rahungi.