Monday, July 14, 2008

डर लगता है
थमे हुए पानी मे भी अब जाने से डर लगता हैखुले आसमान मे भी जाने से डर लगता हैकभी सुनाते थे यारो को हम भी किस्से मोहब्बत केअब तो इश्क़ के ढाई अक्शर गुनगुनाने से डर लगता है

हम किसके सहारे जीये
कुछ तो जीते है जन्नत की तमन्ना लेकरकुछ तमान्ये जिना सिखा देती हैहम किसके सहारे जीयेज़िन्दगी रोज एक तमन्ना बढा देती है
नये ज़माने की मोहब्बत
हमे तो इश्तेहारो सी लगती है ये मोहब्बत की कहानियाँजो कहा नही वो सुना करो, जो सुना नही वो कहा करोये तो नये ज़माने की मोहब्बत है यार्रोजरा फासले से मिला करो
किसी की नज़र मे हूँ
मिट्टी का जिस्म लेके पानी के घर मे हूँमन्ज़िल है मौत मेरीमै हर पल सफर मे हूँहोना है क़त्ल ये मालुम है मुझेलेकिन खबर नही किसी की नज़र मे हूँ
दोस्ती बेची
कभी आंसू तो कभी खुशी बेचीहमने अकेलेपन मे तन्हाई बेचीचन्द सांसे है खरीदने के लियेरोज मरती हुई ज़िन्दगी बेचीसताने लगे जब मुझ मेरे ही सायेपरेशान होके मैने रोशनी बेचीएक हम ही थे जो खुद ही बिक गयेवरना लोगो ने तो ज़िन्दगी बेची

1 comment:

Palak.p said...

jab maine is pehli baar pdha ye muze acha laga per bar bar [padhay per ye muz sab se behtarin laga.. it's fantastic...