Tuesday, August 5, 2008

मंजिलें दूर हैं

मंजिलें दूर हैं

मंजिलें दूर हैं पर उनका सहारा भी है,
उनसे मिलने का हर वक्त गवारा भी है,
हर तरफ़ मुश्किलें हैं दिल को ये मालूम भी है,
हर तरफ़ खाई है कुछ दूर पर किनारा भी है।
मंजिलें दूर हैं पर उनका सहारा भी है...
मुद्दत तो न हुए थे पर दिल को क्यूँ ये लगता है,
दर्द बेसुमार है पर दिल को संभाला भी है,
इतनी शिद्दत से मैं उनका क्यूँ न इंतज़ार कतरा,
आख़िर वो दोस्तों में सब से प्यारा भी है.
मंजिलें दूर हैं पर उनका सहारा भी है...
वो जूनून नही पर जूनून से कम भी नही है वो,
महबूब इस दिल का और शुकून हमारा भी है,
न ख्वाहिश कम है न आरजू कम है उनका,
ज़ज्बा इस दिल का और सुरूर हमारा भी है.
मंजिलें दूर हैं पर उनका सहारा भी है...

...रवि

6 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

रविजी, बहुत सुन्दरता से अपने भावों को शब्दों मे पिरोया है।बहुत बढिया।

Nitish Raj said...

रवि जी, सही शब्दों को सही जगह बांधा है..
इतनी शिद्दत से मैं उनका क्यूँ न इंतज़ार कतरा,
आख़िर वो दोस्तों में सब से प्यारा भी है.
(जहां ना पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि, लेकिन ये रवि कवि वाला रवि है...)
सुंदर...अति उत्तम।।।।।

Anonymous said...

इतनी शिद्दत से मैं उनका क्यूँ न इंतज़ार कतरा,
आख़िर वो दोस्तों में सब से प्यारा भी है.

kon...?

PREETI BARTHWAL said...

वो जूनून नही पर जूनून से कम भी नही है वो,
महबूब इस दिल का और शुकून हमारा भी है,
बहुत अच्छी रचना

Udan Tashtari said...

बहुत बढिया.

रश्मि प्रभा... said...

bahut sunder