होठो पे मोहब्बत के फसाने नही आते
साहिल पे समंदर के खज़ाने नही आते
पलके भी चमक उठती है सोते मे हमारी
आंखो को अभी ख्वाब छुपाने नही आते
दिल उजडी हुई एक सराये की तरह है
अब लोग यहा रात बिताने नही आते
यारो नये मौसम ने ये एहसान किये है
अब याद मुझे दर्द पुराने नही आते
उडने दो परिंदो को अभी शोख हवा मे
फिर लौट के बचपन के ज़माने नही आते
इस शहर के बादल तेरी ज़ुल्फो की तरह है
ये आग लगाते है, बुझाने नही आते
एहबाब भी गैरो की अदा सीख गये है
आते है मगर दिल को दुखाने नही आते।
साहिल पे समंदर के खज़ाने नही आते
पलके भी चमक उठती है सोते मे हमारी
आंखो को अभी ख्वाब छुपाने नही आते
दिल उजडी हुई एक सराये की तरह है
अब लोग यहा रात बिताने नही आते
यारो नये मौसम ने ये एहसान किये है
अब याद मुझे दर्द पुराने नही आते
उडने दो परिंदो को अभी शोख हवा मे
फिर लौट के बचपन के ज़माने नही आते
इस शहर के बादल तेरी ज़ुल्फो की तरह है
ये आग लगाते है, बुझाने नही आते
एहबाब भी गैरो की अदा सीख गये है
आते है मगर दिल को दुखाने नही आते।
...रवि
4 comments:
फिर लौट के बचपन के ज़माने नही आते
इस शहर के बादल तेरी ज़ुल्फो की तरह है
ये आग लगाते है, बुझाने नही आते
एहबाब भी गैरो की अदा सीख गये है
आते है मगर दिल को दुखाने नही आते।
kya baat hai...kya andaaj hai..
उडने दो परिंदो को अभी शोख हवा मे
फिर लौट के बचपन के ज़माने नही आते
लाजवाब ग़ज़ल और एक से बढ़ कर एक बेहतरीन शेर...दाद कबूल कीजिये.
नीरज
बहुत उम्दा, क्या बात है!आनन्द आ गया.
bahut khoob..
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