Wednesday, August 27, 2008

आंखो को अभी ख्वाब छुपाने नही आते


होठो पे मोहब्बत के फसाने नही आते
साहिल पे समंदर के खज़ाने नही आते
पलके भी चमक उठती है सोते मे हमारी
आंखो को अभी ख्वाब छुपाने नही आते
दिल उजडी हुई एक सराये की तरह है
अब लोग यहा रात बिताने नही आते
यारो नये मौसम ने ये एहसान किये है
अब याद मुझे दर्द पुराने नही आते
उडने दो परिंदो को अभी शोख हवा मे
फिर लौट के बचपन के ज़माने नही आते
इस शहर के बादल तेरी ज़ुल्फो की तरह है
ये आग लगाते है, बुझाने नही आते
एहबाब भी गैरो की अदा सीख गये है
आते है मगर दिल को दुखाने नही आते।

...रवि

4 comments:

Manvinder said...

फिर लौट के बचपन के ज़माने नही आते
इस शहर के बादल तेरी ज़ुल्फो की तरह है
ये आग लगाते है, बुझाने नही आते
एहबाब भी गैरो की अदा सीख गये है
आते है मगर दिल को दुखाने नही आते।

kya baat hai...kya andaaj hai..

नीरज गोस्वामी said...

उडने दो परिंदो को अभी शोख हवा मे
फिर लौट के बचपन के ज़माने नही आते

लाजवाब ग़ज़ल और एक से बढ़ कर एक बेहतरीन शेर...दाद कबूल कीजिये.
नीरज

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा, क्या बात है!आनन्द आ गया.

Vikrant said...

bahut khoob..