मेरी आंखो मे तेरे दीदार की ख्वाहिश अभी तक है।
तेरी यादो से मेरे दिल की ज़ेबैश अभी तक है।
निगाहे बस तुम्हे ही ढूंढती रहती है और लम्हा,
रुख-ए-रोशन दिखा दो इनकी फरमाईश अभी तक है।
तेरी यादो से मेरे दिल की ज़ेबैश अभी तक है।
निगाहे बस तुम्हे ही ढूंढती रहती है और लम्हा,
रुख-ए-रोशन दिखा दो इनकी फरमाईश अभी तक है।
तुम्हारे बाद कोई भी नही आया है इस दिल में,
तुम अपना घर बना लो इतनी गुनजाईश अभी तक है।
अज़ल से तुम को चाहा है अबाद तक तुम को चाहेंग़े,
मेरी उलफत की बस इतनी सी पैमाईश अभी तक है।
अज़ल से तुम को चाहा है अबाद तक तुम को चाहेंग़े,
मेरी उलफत की बस इतनी सी पैमाईश अभी तक है।
तुम्हारी राह मे मैने वो जो पलके बिछायी थी,
न जाने किस तरहा क़ायम ये ज़बैश अभी तक है।
4 comments:
तुम्हारी राह मे मैने वो जो पलके बिछायी थी,
न जाने किस तरहा क़ायम ये ज़बैश अभी तक है।
" very beautiful to read"
रवि जी आपकी रचना बहुत बढ़िया है. लिखते रहे.
आपने जो शब्द गुनजाईश लिखा है वह गुंजाईश होगा. और उलफत में बिंदी आएँगी. मेरा मतलब उलफ़त होगा. इसी तरह मैने को मैंने और मे को में और तरहा को तरह और नही को नहीं लिखना चाहिए. मेरे ख्याल से शायद printing mistake हो गई है.
मन के भावों का मानवीकरण सुन्दर है!
बहुत सुन्दर.बधाई.
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