Sunday, August 3, 2008

ख्वाहिश


ख्वाहिश


इन्ही रिश्तों मे
किसी मोड़ पर
कौन थक गया, हार गया
पथरीली राहों का ज़हर
चुप चाप किसको मार गया
कौन कहे किससे
चमकती आँखों से दिये
बुझ क्यों गये
वीरान है आशियां
मकीन किधर जा बसे
वहशत-ज़दा सा कोई इन वीरानों में


खामोश उदास क्यों चुप चाप रोता है
उड़ती खाक किसको याद करती है
पानी बिना बरसे किसको भिगोता है
कौन कहे किस से
के राही राह क्यों भटक गया
सफर शुरु भी ना हुया और कोई बे-तरह थक गया
है कुछ कहने के लिये कुछ बचा ही नहीं
शायद कोई ख्वाहिश रोती रहती है
मेरे अंदर बारिश होती रहती है.

4 comments:

seema gupta said...

खामोश उदास क्यों चुप चाप रोता है
उड़ती खाक किसको याद करती है
पानी बिना बरसे किसको भिगोता है
कौन कहे किस से
के राही राह क्यों भटक गया
" marvelleous"

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा.

ghughutibasuti said...

बहुत सुन्दर!
घुघूती बासूती

Anonymous said...

superb............