ख्वाहिश
इन्ही रिश्तों मे
किसी मोड़ पर
कौन थक गया, हार गया
पथरीली राहों का ज़हर
चुप चाप किसको मार गया
कौन कहे किससे
चमकती आँखों से दिये
बुझ क्यों गये
वीरान है आशियां
मकीन किधर जा बसे
वहशत-ज़दा सा कोई इन वीरानों में
किसी मोड़ पर
कौन थक गया, हार गया
पथरीली राहों का ज़हर
चुप चाप किसको मार गया
कौन कहे किससे
चमकती आँखों से दिये
बुझ क्यों गये
वीरान है आशियां
मकीन किधर जा बसे
वहशत-ज़दा सा कोई इन वीरानों में
खामोश उदास क्यों चुप चाप रोता है
उड़ती खाक किसको याद करती है
पानी बिना बरसे किसको भिगोता है
कौन कहे किस से
के राही राह क्यों भटक गया
सफर शुरु भी ना हुया और कोई बे-तरह थक गया
है कुछ कहने के लिये कुछ बचा ही नहीं
शायद कोई ख्वाहिश रोती रहती है
मेरे अंदर बारिश होती रहती है.
4 comments:
खामोश उदास क्यों चुप चाप रोता है
उड़ती खाक किसको याद करती है
पानी बिना बरसे किसको भिगोता है
कौन कहे किस से
के राही राह क्यों भटक गया
" marvelleous"
बहुत उम्दा.
बहुत सुन्दर!
घुघूती बासूती
superb............
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