आप को भूल जाए इतने तो बेवफा नही,
आप से क्या गिला करे, आप से कुछ गिला नही।
सीसा-ऐ-दिल को तोड़ना उनका खेल है,
हमसे ही भूल हो गई उनकी कोई खता नही।
काश वो अपने गम मुझे दे दें तो कुछ सुकून मिले,
वो कितना बदनसीब है, गम जिसे मिला नही।
करनी है अगर वफ़ा कैसे वफ़ा को छोड़ दूँ ,
कहते है इस गुनाह की होती कोई सज़ा नही।
...रवि
http://mere-khwabon-me.blogspot.com/
Saturday, September 20, 2008
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4 comments:
KAHTE THE KHUDA SE HARPAL, MILA DE UNSE KAHI
RAHTE THE KHWABO ME UNKE , JAISE HO YAHI KAHI
DIL ME JO BUS GAYE TUM , FIR KYA GALAT AUR KYA SAHI
KABHI TO SAMJHO HUMARE ES DIL KI KUCH ANKAHI …
बढिया रचना है।
बढ़िया है.
इसे मिताली मुखर्जी ने बड़े सुंदर अंदाज़ में गाया है। पेश करने का शुक्रिया।
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