Saturday, November 15, 2008

छुपते क्यों हो दोस्त...

बड़ी आसानी से दिल लगाये जाते हैं पर,
बड़ी मुश्किल से वादे निभाए जाते हैं।
ले जाती है मोहब्बत उन राहों पर,
जहाँ दिए नही दिल जलाए जाते हैं।

वो लिखते हैं हमारा नाम मिटटी में,
और मिटा देते हैं।
उनके लिए ये खेल होगा,
मगर हम को तो वो मिटटी में मिला देते हैं।

ज़ख्मो को न कुरेदो हरे हो जायेंगे,
मिल जायेंगे ग़म और वो बहुत याद आएंगे
कितने गहरे हैं ज़ख्म इस दिल के,
मिलोंगे जो हमसे तो हम बताएँगे।

हम से छुपते क्यों हो दोस्त,
एक दिन हम ऐसे अंधेरों में खो जायेंगे।
फिर मांगोगे दुआओं में खुदा से हमें,
और हम फिर सपनो में भी नहीं आयेंगे।

4 comments:

Vinay said...

दुखते हुए दिल की सदा है शायद, शायद नहीं सचमुच!

मोहन वशिष्‍ठ said...

बहुत ही मर्मस्‍पर्शी कह सकते हैं एक टूटे दिल की दास्‍तां बेहद खुबसूरत शब्‍दों में पिरोया है आपने बहुत बहुत आभार

Palak.p said...

शब्दों की रचना मै दर्द है पैर ये क्यों है नही समज पाए अब तक ...

रश्मि प्रभा... said...

वो लिखते हैं हमारा नाम मिटटी में,
और मिटा देते हैं।
उनके लिए ये खेल होगा,
मगर हम को तो वो मिटटी में मिला देते हैं।
..........
bahut hi sahajta se dard ko utaara